हिन्दुत्व के नाम पर झूलते संघ और मौजूदा सरकार

या तो हिंदुत्व या हिन्दू राष्ट्र को लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक की जो समझ है । वह देश के सामने कभी आयी ही नहीं है या फिर संघ परिवार के भीतर हिन्दुत्व को लेकर उलझन है।  कि उसे धर्म माने या जीवन जीने का तरीका या फिर स्वयंसेवकों के हाथ में सत्ता आते ही संविधान या संघ की थ्योरी टकराती है। या फिर सत्ता और सत्ता के बाहर स्वंयसेवको के बीच सामजंस्य हो नही पाता क्योंकि हिन्दू राष्ट्र को लेकर नये सिरे से खोफ क्यों पैदा हो रहा है। सवाल प्रधामंत्री मोदी या सरसंघचालक मोहन भागवत के अलग-अलग व्यक्त्व्य भर का नही है। जो टकराते हुए लगते है, बल्कि सवाल देष को लेकर अब उस समझ का है जिससे संघ के मुखिया भी बच रहे हैं। प्रधानमंत्री की चिंता भी धार्मिक हिंसा में दिखाई देती है और उलेमा भी हिन्दू राष्ट्र को फिलास्की नहीं थ्योरी के तौर पर देखना समझना चाहतें हैं। ध्यान दे आर.एस.एस के बनने से दो बरस पहले ही 1923 में वीर सावरकर ने रत्ना गिरी में रहते हुए किताब लिखी हिन्दू कौन, जिसका मर्म यही था कि जिसकी धर्म भूमी और पावन भूमि हिन्दुस्तान है। वही हिन्दू है और जो हिन्दू नही वह राष्ट्रीय नहीं, 1925 में आर.एस.एस बनाते वक्त हेडगोवार ने सावरकर की थ्योरी को खारिज कर दिया । यानी अभी जो स्वयंसेवक हिन्दुत्व को जीवन जीने के तौर तरीके से जोड़ते हैं, उनके जहन में हेडगोवर का ही बीज है।

        याद कीजिए 1952 में हिन्दू कोड बिल का समर्थन जवाहर लाल नेहरू ने किया और चूंकि मुस्लिम और इसाई ही सिर्फ अपने कानून के दायरे में थे तो बाकि धर्म चाहे वह बौध धर्म या फिर सिख,वैश्य लिंगायत या शैव सभी हिन्दू कोड बिल के दायरे में आये । हिन्दुत्व को लेकर मनमोहर जोशी वाले मामले में भी हिदुत्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू शब्द को धर्म से इतर वे आफ लाइफ यानी जीवन जीने के तौर तरीके पर ही पर ही जोर दिया। आप मंबई और नागपुर के हालात देखे तो वहाँ के लोग हिदुत्व को मानते और लेकर चलते है लेकिन संघ से जुड़ने को राजी नही। यानी संघ के हाथ में सत्ता तो संघ विस्तार संघ के हाथ सत्ता नही तो संघ सिमटती हुई दिखती है। जिस प्रकार मौजूदा सरकार में संघ अपनी सोच तले दबी हुई है। उसे उभारने में संघ को खासी मसंक्कत करनी पड़ेगी चूँकि जिस संघ के सोच से बी.जे.पी सत्ता में है । जो वादो को लेकर सत्ता में आयी उसके बाद संघ को तलवार की ढ़ाल बना ले तो इसके मतलब और मायने निकलते क्या हैं। क्या धार्मिक धु्रवीकरण से देश का विकाश होगा या संघ को लगने लगा है । धर्म के आसरे ही सब कुछ संभव है। तो ध्यान दीजिए मौजूदा सरकार पर जो मुद्धों वादो को लेकर सत्ता में आयी वो पूरे न होने पर जनता और संघ दोनो तरीके से काग्रेंस संघ का विरोध कर रही है। इससे संघ को लगने लगा है। यदि कांग्रेस सत्ता आयी तो संघ सिमटने लगेगा। क्योंकि काग्रेंस कारपोरेट के साथ और फंडिंग भी  कारपोरेट की तरफ से मोदी सरकार को ही सबसे ज्यादा है तो सवाल तीन पहला, मोदी सत्ता के बाद कारपोरेट का क्या होगा। जिस तरीके राहुल कारपोरेट के खिलाफ खड़े हैं। दूसरा, संघ की चिंता नजर अभी से आ रही है। तीसरा, मोदी को लगने लगा है। संघ के आसरे और हिन्दुत्व के सहारे ही सत्ता में वापसी कर सकते हैं। तो ध्यान दीजिए गोलवरकर से देवरस के दौर में इस पर खूब चिंतन मंथन हुआ कि हिन्दू शब्द तो कभी धर्म से निकला ही नही। यह भोगोलिक तोर पर निकला हुआ शब्द है । हिन्दू शब्द सिन्धु से निकला है। यहाँ तक की वैदिक साहित्य में भी हिन्दू शब्द का कहीं प्रयोग नही किया गया है। जबकि भारती शब्द धर्म धर्म-संस्कृति से जरूर निकला है। ऋगवेद में भरत यज्ञ का जिक्र है। इन्द्र से इंडियन शब्द की कई जगहों पर बखूबी व्याख्या हुई है तो। जो भारतीयता के आसरे हिन्दुत्व को समझने की जगह हिन्दुत्व के आसरे भारतीयता को टटोल रहे हैं।

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Milan Tomic

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