बड़े धोखे हैं, इस राह में...

विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत अपने बीते 67 वर्षो के अनुभ्व से स्वयं को गोरवान्वित महसूस कर सकता है । याद कीजीए बीते वर्ष 1975 जब इंदिरा गाँधी के द्धारा आपातकाल लगाया गया । उसे उजली और शवेत चादर तले राजनीति पार्टी के अपराधीकरण या अपराधियों के राजनीतिकरण जम्मू कशमीर, ,बिहार,झारखण्ड,छत्तीसगढ़,आन्ध्रप्रदेश तथा महाराष्ट्र के कुछ भागो में वामपंथी,चरमपंथी,एंव पूर्वोतर राज्यों में पृथ्कवादी द्धारा चलाये जा रहे शस्त्र अभियान जैसी परिस्थिति के काले धब्बे भी मौजूद है। इनके इतर भारतीय लोकतंत्र दिनो-दिन मजबूत हो गया है। सोलहवीं लोकसभा के निर्वाचन में जातिवाद,धर्म के बल पर लड़ने वाले राजनीतिक दल,राष्ट्रीय जनता दल,जनता दल यूनाइटेड,डी ़एम ़के,नेशनल कान्फ्रेंस को मिली भारी पराजय ने राजनीतिक पार्टी को बतला दिया कि भारत के लोग अब जागरूक हैं । उनके सामने जाति,धर्म,सम्प्रदाय के अपेक्षा,महंगाई,बेरोजगारी,भ्रष्टाचार ज्यादा मायने रखता है।

         इसी तथ्य को लेकर बी ़जे ़पी सरकार 2014 में कुदे और लोगो को जिस मकड़े के जाल मे फसाया गया। उससे लोग निकल न सके और कुछ बी ़जे ़पी के मंत्री ईस तरह से संवाद बना रहें हैं जो 15 से 20 बार लगातार कमल कमल --------- बोलने से नही थकते और असल मुद्धा को ऐक साइड कर दिया जाता है । आइये जरा समझने की कोशिश करे चुनाव में राजनीतिक दल के खर्च का इतिहास क्या रहा । दरसल उम्मीदवारों एंव राजनीतिक दलों द्धारा किए जाने वाले खर्च का परिणाम सन 1952 के खर्चो के सापेक्ष 2014 में 328 गुण बढ़ गया । उम्मीदवारों और राजनीतिक दलो द्धारा किए जाने वाले व्यय में तो 500 गुना तक की वृद्धी हो चुकी है । सेंटर फाॅर मीडिया स्टडीज द्धारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार सत्रहवीं लाकसभा निर्वाचन पर लगभग 50,000 करोड़ खर्च करने का इनुमान है । ये सिर्फ कागाजों पर है। इससे इतर आप 1 लाख करोड़ का भी अनुमान लगा सकते हैं। हमें लगता है वो भी कम है । इस खरचे के बढ़ने से केन्द्र और राज्य 7000और 10,000 करोड़ का बोझ पड़ेगा। बाकी रूपया राजनीतिक पार्टी अपने जेब से र्खच करेगी जो करोड़ो में हैं। ये आप भली भाॅति जानते हैं। आप कल्पना नही कीजिएगा की भारत का चुनाव इतना महंगाा हुआ कैसे। दरसल बात ये है कि इंदिरा गाँधी कहा करती थी कि चुनाम को इतना महंगा ही इतना बना दिया जाए की कोई विपक्षी कंधे से कंधा न मिला सके । मौजूदा हालात ऐसे हो चले हैं कोई गरीब तबका का चुवा चुनाव लड़ने की हिम्मत नही जुटा सकता । इसके लिए जरा चुनावी खर्च को समझना होगा। याद कीजिए 1952 के चुनावों पर मात्र 10 करोड़ 45 हजार खर्च किए गए थे। जिसे प्रतिव्यक्ति मतदाता चुनाव खर्च 60 पैसे था। 2009 में निर्वाचन पर रू 1483 करोड़ खर्च किया गया। जिससे प्रति मतदाता चुनाव खर्च 12 रूपऐ हो गया। 2014 के चूनाव में कुल खर्च 3426 करोड़ अनुमानित  था। जिसे प्रतिव्यक्ति खर्च बढ़कर 41रू12पैसे हो गया है।
          जरा समझने कोशिश कीजिए क्या मोदी शाह की चाणक्य नीति 2019 में सफल हो पायेगाा। जिस तरह से इंसच्युसन फेल होते दीख रहे हैं। सी ़बी़ आ ़ई को अपराध के कटघरे मे ले आया गया, ब्ठप्एम्क्एब्ठब् ऐसी कोई ऐजेंसी नही छूटा जिसे दागदार न कहा जाए। आखिर जनता जनार्दन किन पर विश्वास करे क्या लोकतंत्र खतरे में है। कौन है लोकतंत्र को खतरे में डालने वाला हमें लगता है एक चीज आपको समझनी चाहिए। 16वीं लााकसभा चुनाव में 34 प्रतिशत सांसदो यानी 186 के विरूद्ध विभिन्न न्यायालय में अपराधिक मामले लंबित है। 2004 एंव 2009 में अपराधिक पिरिष्ठ भूमी वाले सांसदो का अनुपात 24 प्रतिशत एंव 20 प्रतिशत आर ़जे ़डी के सभी चारो सांसद,शिवसेना के 18 सांसद में से 15 सांसद,राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टाी के 5 में से 4 सांसद बी ़जे ़पी के 3 मे से 1 सांसद कांग्रेस के 18 प्रतिशत सांसद के विरूद्ध अपराधिक मामले दर्ज है। महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश तथा बिहार में अपराधिक पिरिष्टभूमी वाले सांसदो की संख्या सर्वाधिक है। आपको जानकर हैरत होगी 112 सांसद के विरूद्ध तो हत्या,हत्या का प्रयास अगजनी, अपहरन जैसी मामले दर्ज है। 16 वीं लोकसभा के आसरे सांसद गाँव  की तरफ देखने से कतराते है तो देश का विकाश होगा कैसे जब संसद ही दागी हो तो लोपाल चलायेगा कोण विकाश करेगा केण,स्वच्छ हवा का सवाल उठायेगा कोण। गरीबी हटेगी कैसे। बहुतेरे सवाल है जों 17 वीं लाकसभा में ये सवाल मायने रखती है। अजीव परिस्थ्तििि है। एक फ्रेम में तीन चेहरे हैं एक एन ़डी ़ए दूसरा यू ़पी ़ए तीसरा नीर्दलीय अब आपको तय करना है आप इसमें कहाँ फीट बैठते हैं।
      क्योंकि भारतीय राजनीति को परिवारवाद ने जकड़ा हूआ है। जड़े गहरी जमा ली हैं। जम्मू कश्मीर में अबदुल्ला परिवार,मुफती परिवार,पंजाब में प्रकाश सिंह बादल,सुखवीर सिंह,हरियाणा में चैटाला परिवार,उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव,रमगोपाल यादव,अखिलेश यादव, धमेन्द्र यादव,अक्षय यादव,अक्षय यादव,रबिहार में लालू प्रसाद यादव,कांग्रेस में गाँधी परिवार, तमिलनाडु में करूणानिधि परिवार बड़ी लम्बी फेहरिस्त है। कितनो के नाम जानियेगा। 60 से 70 वर्ष तक परिवार देश में राज्य और केन्द्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
      2019 के बाद क्या वाकई बीजेपी का पुनर्जन्म होगा ये फिर बीजेपी फिर 1980 में पहुँच जायेगी। 2019 में अगर मोदी चुनाव हार गए तो फिर बीजेपी होगी कहाँ। हमें लगता है मोदी को काग्रेंस नही जनता हरा देगी। तो इंतजार कीजिए 23 मई 2019 का।

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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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