जी,आज बात महिलाओं की कर ली जाए,1.37 अरब आबादी वाले हमारे देश में सिर्फ 66 महिला सांसद हैं, यानी 12 फीसदी के करीब। इस बार चुनावों में पुरुष उम्मीदवार 92.7% और महिला 8% से भी कम हैं। बतौर प्रोफेशन भारत में राजनीति के दंगल में सिर्फ 25% महिलाएं शामिल हैं। लेकिन क्या वजह है कि इस बार चुनाव प्रचार में महिला वोटर्स को लुभाने की खास जुगाड़ लगाई जा रही है? मर्दों का खेल मानी जानेवाली राजनीति में महिलाओं की ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी है कि मोदी से लेकर प्रियंका तक वुमन पावर को तवज्जो दे रहे हैं। ये जताना चाह रहे हैं कि महिला शक्ति उनके लिए कितनी अहमियत रखती है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में बड़े गर्व के साथ महिला पायलट के साथ एक तस्वीर ट्वीट की है। क्या वजह होगी कि देश की इस सशक्त महिला को यूं वुमन पावर का सहारा लेना पड़ा और 3.75 लाख फॉलोअर्स वाले अपने ट्विटर अकाउंट पर उस पायलट को जगह देनी पड़ी? पीएम भी अपने भाषणों में ‘नारी शक्ति को मेरा प्रणाम’ कहकर महिला वोटर को एक पल के लिए प्रभावित तो जरूर करते हैं।
आशय साफ है, राजनेता जानते हैं कि मुसलमान, पिछड़े या किसानों की तरह ही महिलाएं भी उनका बड़ा वोट बैंक हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में महिलाओं ने जमकर वोट भी डाले थे। देश के आधे से ज्यादा राज्यों में पुरुष से ज्यादा महिला वोटर थीं। तो पार्टियों को इतनी समझ तो हो चली है कि पुरुष भले चौराहों की गप्पों से उठकर मतदान केंद्र तक न पहुंचे, या कम पहुंचे, महिलाएं टोलियों में वोट डालने जरूर पहुंच जाएंगी। शायद यही वजह है कि अपने घोषणा-पत्र में कांग्रेस से लेकर भाजपा तक ने महिलाओं के लिए काफी वादे किए है। फिर चाहे वह राहुल के न्याय में 5 करोड़ महिलाओं को मिलने वाले 72 हजार का हिसाब हो। या फिर भाजपा के 48 पेजों के संकल्प-पत्र में 37 बार महिला शब्द का जिक्र।महिला वोटरों को टारगेट करने के पीछे क्या गुणा-भाग हो सकता है ये इस चुनावी सीजन का सबसे कठिन सवाल है। क्या राजनेता महिलाओं को आसान जरिया मानते हैं, जिन्हें थोड़े से जतन और इमोशनल अत्याचार के ओवरडोज से लुभाया जा सकता है? भावनाओं के जरिए न सिर्फ महिलाओं को मनाया जा सकता है बल्कि उसे जरिया बनाकर पुरुष वोटरों तक भी अपना चुनावी रास्ता तय किया जा सकता है। शायद यही वजह है कि महिला वोटर अचानक अहम हो चलीं हैं।
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