‘सुधर जाओ नही तो मुश्किल होगी‘

          हर दिन हर बरस ,किसी न किसी सत्ता के कई बरस ,सत्ता का जसन,जनता के हालात जस के तस , वाकई हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हंै। जरा समझने की कोशिस कीजिए। इंस्च्युसन फेल हो जाए, चुनाव आयोग को ताक पर रख कर देखा जाए। स्वच्छ पानी के मोहताज, स्वच्छ हवा के मोहताज , दो जून की रोटी के लिए गरीब तबको को मयस्सर होना पड़े । जी ये 2019 है। देश चुनावी मुड में है। वादे पर वादे किए जा रहे हैं । सभी राजनीतिक दल अपना मेनिफेस्टो जारी कर चुके है। चुनाव प्रचार-प्रसार में अरबो रूप्या पानी की तरह बहाया जा रहा है। तो क्या ये मान लिया जाए वाकई लोकतंत्र महंगा हो चुका है। लोकतंत्र के आसरे चलिए बात चुनाव आयोग की है वो अहम हैै। अगर चुनाव आयोग का किया जाए। जो भूमिका चुनाव आयोग ही आगे आकर कहे हमारे मुँह तो है लेकिन दाँत नही। यानि यदि कोई राजनीतिक पार्टी चूनाव का उलंघन करता है। अपशब्द का उपयोग करता है। अवैध शराब ,रूप्या जिस तरीके से बंदरबांट किया जाता है। उस पर चुनाव आयोग ने सुर्पीम कोट के सवाल पुछने पर कहा हम सिर्फ नोटिस जारी कर सकते है। कारवाई नहीं। तो सुर्पीम कोर्ट को आगे आकर बोलना पड़ा आपको मालूम है आपकी ताकत क्या है। जरा लोकतंत्र के आसरे समझने की कोशिश कीजिए। किसानों को कैसे हक दिलाये जा सकते हैं। कैसे भूमि अधिग्रहण के नये तरीके इजाद किये जा सकते हैं। कैसे गाँव से पलायन रोका जा सकता है। कैसे विकास क समानता को मिटाया जा सकता है। कैसे कोपोरेट की राजनीति के साथ संगत को खत्म किया जा सकता है। कैसे आम आदमी की भागेदारी सत्ता के साथ हो सकती है। पुलिस सुधार , न्याय में सुधार से लेकर बजट बनाने की रूपरेखा भी बदलने की जरूरत क्यों पड़ी है।

     सस्ती भाषा में समझे तो सत्ताधारी चाहे कांग्रेश का दौर हो या मोदी का दौर वही रटा रटाया जबाव प्रत्येक लोकसभा के चुनाव में डंका बजा कर कहा जाता है। गरीबो को दो जून की रोटी , किसानो को उचीत मूल्या, शिक्षा, स्वास्थय भारत में ठीक तरीके से काम नही करती । हमे लगता है मौजुदा सत्ता को सोचना चाहिए कम से कम जनता के लिए संविधान में जो मुख्य बाते हैं वो तो कम से कम लागू करा देनी चाहिए। संविधान में गरीबी का जिक्र है लेकिन लागू नही करेगें। सुर्पीम कोर्ट ने बकायदा वित्त मंत्री को कहा कि जनता की जो न्यूनतम जरूरते हैं वो तो आप लागू करा दें । कोई रूची नही। ये बात कांग्रेस में भी नही। मौजूदा मोदी सत्ता जिस संघ के आसरे सत्ता में आयी । वही सत्ता संघ पर दबाव दौबारा सरकार बनाने के लिए किया । और वादे के आसरे जो चुनाव में कुदा जाता है। वो जरा समझने की कोशिश कीजिए देखिए मोदी ये नही कर सकती की अगर कांग्रेस ने 30करोड़ गरीब परिवार को 72000 रूप्या प्रतिव्यक्ति को सलाना देगें तो मोदी सत्ता 1 लाख कर देगी ये नही है। क्योंकि कांग्रेस को किसी तरह सत्ता चाहिए। और मोदी कोपोरेट के पीठ पर सवार है कोपोरेट के प्रति मोदी का जो प्रेम जगा वो वाकई देखने लायक है। 72000 रू जो  कांग्रेस सरकार गरीब परिवार को देगा इसमें समझने की बात ये है कि 6000 रू महीना हर व्यक्ति को मिलेगा। यानि 193रू 54पैसा मिलेगा। यानि 193रू 54पैसा हर दिन जो न्यूनतम आय से बहुत अधिक है। गाँव में प्रतिव्यक्ति आय 28रू है और शहरों में प्रतिव्यक्ति आय 33रू है। अगर 193रू 54पैसे मिलेगें वाकई सोचने वाली बात है। 165रू 54पैसा अधिक इसके कारण महदुरी महंगा होगा। और इसका सबसे ज्यादा असर कोरपोरेट पर पड़ेगा यानि हो जो भी 72000 बनाम 6000 में जनता को तय करना है हमें जरूरत किनकी है दोनो में।
     मेरा मानना है। कांग्रेश बदली है जिस तरह से कांग्रेस के मेनिफेस्टो में गरीबों को मनरेगा के तहत 100 दिन का रोजगार मिलता था अब 150 दिनो का रोजगार मिलेगा। 22 लाख नौकरी जीडीपी का 6 प्रतिशत स्वस्थ पर खर्च करेगा। सरकार 2019 में जिसकी विकाश पटरी पर कैसे आयेगी ये दूर की गोटी है। क्या साहेब-शाह या कोेई नेता कह पायेगें की जिन मुद्धो के आसरे हम सरकार में आयें वो कहाँ हैं।
     ध्यान दीजीए मोदी दौर में, हर घंटे एक टवीट , हर 12वें दिन एक चुनावी रेली, हर 17वें दिन विदेश यात्रा पर , हर 18वें दिन एक नई योजना का एलान , हर भाषण में औसत 5 वें वाक्य शब्द में ‘गरीब शब्द‘ का जिक्र क्या इन्ही से देश का विकास पटरी पर दौड़ने लगेगा। मेरा भारत बदल रहा है। तो इंतजार कीजिए जून का महीना 2019 का जनादेश।

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Milan Tomic

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